भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छियत्तर / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
आपणै अठै बीकानेर मांय भी
-जठै मॉल है
-कमाल है
अजै भी नाळ्यां मांय पाणी पीवै फकीर
पछै भी नीं समझै है सरीर
कै भाखा अरथविहूणी हुयगी है
संवेदन हुयग्यो है लीर-लीर
पछै भी पोथ्यां छपावणी है
-के जंजाळ है।
-कमाल है।