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छीन न लेना / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
1
सर्दी में ली थी
गरमी में लौटाई
उसने धूप ।
2
स्पर्श तुम्हारा
भिखारी को कम्बल
शीत-प्रतीक्षा।
3
तुम्हारा प्रेम-
गरीब को अलाव
मात्र सहारा।
4
कभी तो चखो
सर्दी में हलुवे -सी
मेरी प्रीत है॥
5
तुम्हारा आना
सर्दी में लिहाफ-सा
साँसें दहकी।
6
छीन न लेना
एक ही लिहाफ है
तेरी प्रीत का।
7
शीतनिशा है
जीवन का संघर्ष
तू रवि- रश्मि॥
8
करवा चौथ
मैं हूँ प्रतीक्षारत
तुम हो चाँद।
9
हुआ विलम्ब
तुम्हें आने में प्रिय
श्वेतकेशा मैं।
10
जीवन भर
अँगीठी -सी सुलगी
मन क्यों सीला।
-०-
[05-11-2018]