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छुट्टी को मनाने में मुलुक मस्त-मस्त है / अमरेन्द्र
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छुट्टी को मनाने में मुलुक मस्त-मस्त है
26 जनवरी है, ये 15 अगस्त है
सब लोग बराबर ही थे जिसकी निगाहों में
सबकी नजर में आज वो फिरकापरस्त है
सरकार हमें देखे कहाँ उसको है फुर्सत
कुनवे को मनाने में ही वह अस्त-व्यस्त है
हैवानियत का हौसला कितना बुलन्द है
इन्सानियत का रूहो बदन पस्त-पस्त है
शकुनि की कुटिल चाल नहीं हार पांडव की
कुरुक्षेत्रा कहेगा कि ये किसकी शिकस्त है
ये लोग खड़े फैसले को जबकि देश में
धारा भी, संविधान भी सब कुछ निरस्त है
दंगाइयों को छूट है-चाहे वो जो करे
अमरेन्द्र पे पहरा पुलिस का और गस्त है।