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छेड़ा है संगीत भ्रमर ने / चन्द्रगत भारती
Kavita Kosh से
जब जब तितली कोई उड़कर
फूलो पर मंडराती है
सच कहता हूं याद तुम्हारी
मुझको बेहद आती है।
पतझड़ के दिन बीत गये हैं
आया है ऋतु राज यहाँ !
छेड़ा है संगीत भ्रमर ने
सजा है दिल का साज यहाँ !
बैठ कली मुस्कान ओढकर
बस अनुराग जगाती है।
देखूं अल्हड़पन कलियों का
नृत्य करें तरुणाई में
जाने कितनी मादकता है
सच इनकी अंगड़ाई में !
चाह यही बस गले लगा लूं
मन कितना जज्बाती है।
भूल न पाया कभी तुम्हें मैं
बसी हुई तुम अंतर में !
ऐसा क्या है प्रिये तुम्हारे
जादू,टोना मंतर में !
अहसासों में सांस तुम्हारी
आज तलक महकाती है।