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छेड़ जाती बयार गर्मी की / कल्पना 'मनोरमा'

छेड़ जाती बयार गर्मी की।
रात लाती करार गर्मी की।

ताल महके कमल के फूलों से,
छाँव देती दुलार गर्मी की।

दिन झुलसता रहा दुपहरी में,
चाँद सुनता पुकार गर्मी की।

साँझ आती है रोज धीरे से,
बात सुनती हजार गर्मी की।

राह भूली हवा लगी चिढ़ने,
देह सहती है मार गर्मी की।

तल्ख तेवर हैं 'कल्प' मौसम के,
कौन लिखता बहार गर्मी की।