छेदी राम-1 / राजेश्वर वशिष्ठ
हम दोनों तीस साल पहले मिले थे
छेदी राम की इस छोटी सी दुकान पर
इण्डिया एक्सचेंज के पास वाली गली में
मुझे नहीं पता था कलकत्ते की बारिश में
दिल्ली के बने जूतों के सोल
किसी नाव की तरह बह जाते हैं
मुझे आश्चर्य था
बालूजा का नया जूता पहली ही बारिश में
जनता के विश्वास की तरह बिखर गया
उन दिनों लोगों के पास
दर्ज़न भर जूते भी नहीं हुआ करते थे
मेरे पास तो दूसरा भी नहीं था
कराहते जूते लिए
प्रवीर ने मुझे छेदी से मिलवाया
और हम दोस्त बन गए
तब मैं और छेदी दोनों ही जवान थे
मैंने बताया, भाई बिल्कुल नया जूता है
पता नहीं क्यों सोल निकल रहा है
और पानी अन्दर घुस रहा है;
छेदी ने जूते का मुआयना किया और बताया
बाबू, यह जूता बंगाल के हिसाब से नहीं बना है
मुझे अचम्भा हुआ
जूतों में भी प्रान्तीयता सर्वोपरी है !
छेदी ने कहा
यहाँ चमड़े के सोल के ऊपर
रबड़ का सोल भी ज़रूरी है
क्या आप नहीं जानते
ज्योति बाबू की इन्दिरा जी से अच्छी दोस्ती है
इसी दोस्ती के चलते उन्होंने बंगाल में
कांगेस को सोल विहीन कर दिया है
अब काँग्रेस के जूते में भी हुगली बहती है बाबू साहेब !
मैं इस गूढ़ दर्शन को समझ नहीं पाया
छेदी ने समझाया --
तो आपके इस दिल्ली वाले जूते पर
हम कलकत्ता का रबड़ सोल जड़ देते हैं
यहाँ के मशहूर चीनी जूता कारीगर
इसे ही लगाते हैं
कामरेड इसी को पहन कर दिन भर
दफ़्तरों के बाहर
लाल सलाम, लाल सलाम कर क़दमताल करते हैं
मैं छेदी की कलाकारी पर मुग्ध हो गया
हर नए जूते का यज्ञोपवीत संस्कार
छेदी राम ही करवाते
कुछ ऐसे इन्तज़ाम करते
जो जूता बनाने वाली कम्पनियाँ
जान-बूझ कर नहीं करती थीं
वह एड़ियों पर
हवाई जहाज़ के टायर का रबड़ चिपका देता
तो मुझे वैसा ही लगता जैसे लाखोटिया जी ने
कोई टैक्स-चोरी का नुस्खा बता दिया हो
जूता ठीक हो गया
यहाँ तक कि दौड़ने लगा
जिस दिन इन्दिरा जी की हत्या हुई
आगजनी, लूट-पाट
और बम-बाज़ी से आतंकित शहर में
जूता, डलहौज़ी से
साल्टलेक, करुणामयी तक पैदल ही दौड़ा
उस दिन मुझे समझ आया
जूता पहनने के लिए पाँव ही नहीं
अक़्ल भी ज़रूरी है ।