छेनी और हथौड़ा लेकर मूरत नई बनाऊं तो / राकेश जोशी
छेनी और हथौड़ा लेकर मूरत नई बनाऊं तो
आज ग़रीबों को लेकर मैं, महलों तक आ जाऊं तो
सड़कों पर दौड़ूं, चिल्लाऊं, उजियारों से बात करूं
घायल सारे सपने लेकर, तुमसे मिलने आऊं तो
रिमझिम बारिश, दिन में सूरज, रात को चंदा, मैं और तुम
वो अफ़साना तुमसे मिलकर फिर से मैं दोहराऊं तो
मैं भी गर चालाक बनूं और चाल तुम्हारी हर समझूं
दुनिया को पहचान मैं जाऊं, फिर न धोखा खाऊं तो
थोड़ी तो मजबूरी भी है, दिल से दिल की दूरी भी है
मन में कितना सूनापन है, तुमको आज दिखाऊं तो
आज सफ़र पर जब मैं निकला, बस्ती ने आवाज़ नहीं दी
चिड़ियों ने भी हाल न पूछा, फिर भी चुप रह जाऊं तो
हौले-से तुमको पुचकारूं, सर पर हाथ फिराकर मैं
टूटी हुई मुहब्बत के सब घावों को सहलाऊं तो
टैंक तुम्हारे देखे हमने, सीनों पर चढ़ जाते हैं
मैं भी अपने सैनिक लेकर तुम पर बम बरसाऊं तो