भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छेह‘र नेह !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
फूटग्यो घड़ो
बुझग्यो दीयो
सपकैण जाता रया
जळ‘र अगन,
झरग्यो फूल
टूटग्यो सपनूं
छोड‘र कोनी गया
मैक‘र मन !