भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोटा सा अकेलापन / यानिस रित्सोस / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
आँगन के इस कोने में,
साबुन के झाग भरे पानी से
घिरी क्यारी में,
कुछ गुलाब फैला रहे हैं अपनी सुगन्ध
पर कोई
इन गुलाबों को
नहीं सूँघता ।
कैसा भी हो अकेलापन
छोटा नहीं होता ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय