राग ललित
छोटिऐ धनुहियाँ, पनहियाँ पगनि छोटी,
छोटिऐ कछौटी कटि, छोटिऐ तरकसी |
लसत झँगूली झीनी, दामिनिकी छबि छीनी,
सुन्दर बदन, सिर पगिया जरकसी ||
बय-अनुहरत बिभूषन बिचित्र अंग,
जोहे जिय आवति सनेह की सरक सी |
मुरतिकी सूरति कही न परै तुलसी पै,
जानै सोई जाके उर कसकै करक सी ||