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छोटे-छोटे सपने / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
रेलवे टाइम टेबल के नक्शे को देखते हुए
मैं अपने आप से सवाल करता हूँ-
कहाँ है वारंगल?
कहाँ है बम्बई?
जब मिल जाती हैं दोनों जगहें
तो बहुत खुश होता हूँ
काग़ज़ के नक्शे पर
कितनी छोटी है धरती
कितनी छोटी हैं-
सड़कें, नदियाँ
पहाड़, समन्दर सभी कितने छोटे हैं
चुपचाप छुप गया है पूरा देश
रेलवे टाइम टेबल में
वारंगल और बम्बई चली गई हैं-
बच्चों की शरारतें
लड़ाई-झगड़ा
डाँट-डपट
कुछ भी नहीं है घर में
खिलौनों ने छुपाकर रखे हैं-
थोड़े-से ठहाके
थोड़े-से आँसू
थोड़ी-सी हँसी
छोटे-छोटे सपने।