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छोड़ना गाँव अपना कब / चन्द्रगत भारती
Kavita Kosh से
रहीं मजबूरियाँ कुछ तो
शहर जो खींच लाईं हैं
छोड़ना गाँव अपना कब
भला आसान होता है।।
वहाँ होता अगर साधन
उदर की आग बुझ जाती !
अलविदा गाँव को बोलें
कभी नौबत नही आती !
मिट गई भूख तो लेकिन
मन परेशान होता है।।
यहाँ हर चीज मिलती है
सुकूं मिलता नही दिल को !
सभी बस भागते रहते
पकड़ने अपनी मंजिल को !
रात रंगीन होती है
दिवस सुनसान होता है।।
निवाला गाँव मे कम है
खुशी की है मगर राहें
पड़े गर पाँव विपदा के
निपटती है बहुत बाहें
यहाँ गुमनामियाँ रहतीं
वहाँ पहचान होता है।।