भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोड़ब नहि हाथ / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


प्रेम
योग अछि
तँ हम योगी भेलहुँ
अहाँ योगिनी
प्रेम
भोगि अछि
तँ हम भोगी भेलहुँ
अहाँ भोगिनी।

प्रेम
मान अछि
तँ हम मानित भेलहुँ
अहाँ मानिनी
प्रेम
अपमान अछि
तँ हम अपमानित भेलहुँ
अहाँ अपमानिनी भेलीह।

एक बेर हाथ लेब
तँ किछु भऽ जाय
छोड़ब
नहि हाथ
एक-दोसराक
अंत-अंत धरि।