भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोड़ देना पड़ता है सब कुछ / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
कुछ दिन कोई रोक लेता है
रोक लेता है कोई कुछ दिन और
और और लोग रोक लेते हैं कुछ दिन
एक दिन चलना पड़ता है फिर भी
चलते हुए छोड़ देना पड़ता है सब कुछ
यहाँ तक कि याद भी एक दिन छूट जाती है पीछे।