भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोड़ सूरज को नये दिन / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शोर
सागर के किनारे
सुन रहे जल थके-हारे
 
मुड़ गयीं चुपचाप लहरें
पीठ पर नावें सँभाले
सीपियों की खोज करते
पाँव में उग आये छाले
 
छोड़
सूरज को गये दिन
  फिर खजूरों के सहारे
 
हाथ में ले लालटेनें
लौट आये घर मछेरे
मछलियों की आँख में हैं
धूप के नाज़ुक बसेरे
 
ऊबकर
जल-पाखियों ने
पंख अपने हैं उतारे