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जंगल की दीवाली / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
जंगल में मन रही दीवाली,
बिना पटाखों बिन बम वाली।
शेर सिंह ने दिए जलाए।
हाथी हार फूल ले आए।
भालू लाई बताशे लाया।
चीतल पंचा मृत ले आया।
सेई लाई पूजा कि थाली।
हिरण ढेर फुलझडियाँ लाए।
नेवलों ने लड्डू बंटवाए।
गेंडा ढोल बड़ा ले आया।
बाँध गले में ख़ूब बजाया।
नाची बंदर की घरवाली।
शक्कर घी की बनी पंजीरी,
सिर पर रखकर लाई गिलहरी।
पांडा सेव संतरे लाया।
कौआ बीन बजाता आया।
कूदी ख़ूब गधे की साली।
सभी जंतु खुशियों के मारे।
लगा रहे थे जय-जय कारे।
फुलझडियों की हुई रोशनी।
गले मिले सब भूल दुश्मनी।
खुशियों की बारात निकाली।
सबने मिलकर धूम मचाई।
नारियल लाई पंजीरी खाई।
नहीं पटाखे चले एक भी।
नहीं धमाका हुआ एक भी।
सभी ओर छाई खुशहाली।