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जंगल के झरने की धार / शीन काफ़ निज़ाम

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जंगल के झरने की धार
चाहा भर लूं बांह पसार

घने दरख़्तों की सिसकार
और नदी की एक नकार

बूंद नदी सागर संसार
पानी तेरे रूप हज़ार

वा कर आफ़ाक़ी आगोश
देख तो लूं क्या है उस पार

दहलीज़ों-दहलीज़ों तक
चलना थकना कितनी बार

दूर उफुक़ से फिर उभरी
कोमल काजल सी तलवार

जंगल में क्यूँ याद आये
अपने आँगन के असरार