भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जंगल के लिए / मोहन साहिल
Kavita Kosh से
बहुत कुछ करना है अभी
पेड़ों के कटे शरीरों को निहारने के अलावा
पूछना है चारों ओर बिखरी टहनियों का हाल
सूखे पत्तों को एकत्र कर जलाना है एक अलाव
कि जिस्म थरथरा रहे हैं इस सर्द जंगल में
भयानक है कटी चोटियों के दरख्तों का जंगल
एक के कटने पर लगाता है दूसरे ठहाके
यहाँ कुल्हाड़ियां लपलपाती हैं हर वक्त
एक-एक कर ढहते हैं दिग्गज
और जंगल में बिछी दूब कुचली जाती है
इस तबाही के वक्त
गुफा में रहता है जंगल का राजा
धूप या चाँदनी में वन रक्षक धुत्त
बहुत कुछ करना है
ठूंठों के साए में कुछ कोंपलें हैं बाकी
उन्हें रोपना है सही जगह
कटी चोटियों वाले दरख्तों के सायों से दूर
जहाँ बन सकें ये भरे पूरे वृक्ष।