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जंगल जागा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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जंगल जागा
मेपल -पतझर
या लगी कहीं आग
भड़के शोले 
दहक उठे पात
क्या खूब  है यौवन !
69
ओ मनमीत!
गले से लग जाओ 
अब दूर न जाओ, 
कहाँ खो गए 
तुम हो गए मौन 
अब  मेरा है कौन !
70
जले हैं पंख
टूट गए हैं  डैने 
ऊँचे शैल शिखर, 
बड़ी चुनौती 
आँधी चली हिमानी 
जाना है कोसों दूर ।
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