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जंगल से जलते बुझते नगर मेरे नाम क्यूँ / शीन काफ़ निज़ाम

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जंगल से जलते बुझते नगर मेरे नाम क्यूँ
मुमकिन नहीं फिर भी मफ़र<ref>रक्षा</ref> मेरे नाम क्यूँ

अय्याम<ref>योम का बहुवचन</ref> जिस में रहते हो आसेब<ref>भूत-प्रेत</ref> की तरह
ख़्वाबों के ख़ाक-ख़ाक खंडहर मेरे नाम क्यूँ

हमसाए में हजर<ref>पत्थर</ref> न कहीं साय-ए-शज़र<ref>पेड़ की छांह</ref>
जामिद<ref>जड़</ref> जनम-जनम का सफ़र मेरे नाम क्यूँ

मफ़रूर<ref>भागा हुआ</ref> मुल्ज़िमों सा मसाफ़त<ref>यात्रा</ref> में मह्र<ref>मग्न </ref> हूँ
काले समुन्दरों का सफ़र मेरे नाम क्यूँ

शोले की आरजू में करूँ रक़्स<ref>नृत्य</ref> उम्र भर
उस ने किया लिबास-ए-शरर<ref>चिंगारी का परिधान</ref> मेरे नाम क्यूँ

शब्दार्थ
<references/>