भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जंगल से भाग आए थे हम आग के डर से / विनय कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जंगल से भाग आए थे हम आग के डर से
अब शहर जल रहा है, तो चिपके हैं शहर से।

हमको कहाँ यक़ीं था उन्हें देखकर हुआ
मरता नहीं है साँप कभी अपने ज़हर से।

बाज़ार की आँखों से बहुत देख चुके हो
देखो कभी दरख्त को चिड़िया की नज़र से।

मरने के सिवा और भला रास्ता है क्या
पत्थर की जगह आने लगे फूल उधर से।

सबके कहर से उसने बचाया मुझे मगर
अब कौन बचायेगा मुझे उसके कहर से।