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जका सोध्या है आज / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
काळी नीं ही
कोई बंग
गाभा भी नीं हा
धूडिय़ा धूळ जीवाश्म
जका सोध्या है आज।
बोरंग चूंदड़ी
केसरिया कसूंम्बल में
सज्योड़ी सुहागणां
खणकांवती हो सी
सुहाग पाटला
लाल-पीळा-केसरिया।
बगत रै जै’री
बळतै डस्यौ हो सी
जणां ई तो उतर्यो है
रंग-बंग माथै काळो
काळीबंगा करतो
सोनळ अतीत नै।