जगत कहता न थकता मैं, सतत शृंगार लिखती हूँ।
यमक अनुप्रास भर-भर कर, अथक अभिसार लिखती हूँ।
उन्हें हो ज्ञात शायद यह, प्रणय है मूल जगती का
अतः मैं नेह मसि लेकर, भुवन का सार लिखती हूँ।
जगत कहता न थकता मैं, सतत शृंगार लिखती हूँ।
यमक अनुप्रास भर-भर कर, अथक अभिसार लिखती हूँ।
उन्हें हो ज्ञात शायद यह, प्रणय है मूल जगती का
अतः मैं नेह मसि लेकर, भुवन का सार लिखती हूँ।