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जगत में है पैसे का खेल, पैसा यारा पैसा प्यारा / प. रघुनाथ

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जगत में है पैसे का खेल, पैसा यारा पैसा प्यारा,
पैसा विष की बेल।। टेक ।।

पैसा नांचे, पैसा कूदे, पैसा खेल खिलाता है,
पेसे के चक्कर में मदारी, बन्दर रीझ नचाता है,
पैसे से पंडित ज्योतिष, मन की बात बताता है,
पेसे सै खूनी डाकू, रिश्वत दे छूट जाता है,
पैसे बिन विद्वान आदमी, फिरता धक्के खाता है,
पैसे बिना किसी का ना, होता रिश्ता नाता है,
पैसा ही दुनियांदारी में, बैर-भाव और मेल।।1।।

जिसके पास पैसा होता, उसकी घनी होती लाज,
पैसे से व्यापार चलावै, ब्याज पै लगावे ब्याज,
पैसे बिना राज के म्हा, होता नहीं कोई काज,
पैसे बिना भूखा मरजा, खाने को ना मिले नाज,
पैसे बिन बेइमान बने, दुनियां कहे धोखेबाज,
पेसे सै आकाश के म्हा, रोज उड़े फिरे जहाज,
पैसे से चलती है जगत में, मोटर, लारी रेल।।2।।

पेसे से हो कामकाज, पैसा ही भगवान है,
पैसे बिना आदमी की, रहती नहीं शान है,
पैसे बिना कोई किसी का, ना करता सम्मान है,
ब्याह शादी में पैसे बिना, आदमी बिरान है,
पैसा ही गुणवान और, पैसा सबकी जान है,
जिसके पास पैसा नहीं, वो दु:खी इन्सान है,
पैसे सै भी हो जाती है, खामेखां की जेल।।3।।

तीन देव पैसे के, पांचों रहते इसके साथ,
पैसे के काबू में रहती है, छत्तीस की जमात,
पैसे ही की दुनियां सारी, पैसे ही की पंचायत,
पैसा सबका प्यारा होता, पैसे के ना होती जात,
पैसे ही का बैर भाव, पैसे ही की करामात,
पैसे ही के लालच में, कविता गाता है रघुनाथ,
पैसा देई देवता जग में, दिया बाती तेल।।4।।