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जगमग दरबार / सुरेश विमल

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सभासद जैसे नन्हें दीप
दिवाली का जगमग दरबार।

फुलझड़ियाँ लगती है जैसे
हंसती कोई राजकुमारी
सहमा-सा देखे अंधियारा
उजियारे की खुली कटारी।

सोने-चांदी मढ़ी बस्तियाँ
रत्नों से जो चढ़े बाजार।

चले पटाखे हिला घोंसला
नन्ही-सी चिड़िया का
छींके पर के रसगुल्ला में
अटका मन गुड़िया का।

हर मुखड़े पर सजी हुई
है मुस्कानों की बंदनवार।