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जगाकर देखिए / प्रेमलता त्रिपाठी

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भूल कर मतभेद मन को फिर जगाकर देखिए।
धर्म का आधार लेकर मत लड़ाकर देखिए।

कर्म हितकारी करें हम मर्म को समझें सभी,
दीप स्नेहिल फिर जले बाती बढ़ाकर देखिए।

बाग माली ही बचाते हैं सदा हम जानतें
लूटते माली नजर को अब बचाकर देखिए।

धुंध है अज्ञान का जो भी करें हम सामना,
राह यदि हो सत्य उसको आजमाकर देखिए।

द्वेष गलियों में छिपा है जो वहाँ भी प्रेम से,
स्वप्न सुंदर नव हृदय में फिर सजाकर देखिए।