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जगाना कठिन है / प्रेमलता त्रिपाठी
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अगन देश हित जो जलाना कठिन है।
लगी हो अगन तब, बुझाना कठिन है।
तड़पता हृदय देख जिनकी शहादत,
अलख वीरता वह, जगाना कठिन है।
तिरंगा लहर ले, पुलकता हृदय जब,
सहज प्यार उसका, मिटाना कठिन है।
नहीं तोड़ सकता, प्रलोभन जिसे वह,
सहे यातना मन, लुभाना कठिन है।
सदा मातृ भू के, रहे जो दिवाने,
नमन आज उनको, भुलाना कठिन है।