भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जग की सजल कालिमा रजनी / जयशंकर प्रसाद
Kavita Kosh से
जग की सजल कालिमा रजनी में मुखचन्द्र दिखा जाओ .
ह्रदय अँधेरी झोली इनमे ज्योति भीख देने आओ .
प्राणों की व्याकुल पुकार पर एक मींड़ ठहरा जाओ .
प्रेम वेणु की स्वर- लहरी में जीवन - गीत सुना जाओ .
स्नेहालिंगन की लतिकाओं की झुरमुट छा जाने दो .
जीवन-धन ! इस जले जगत को वृन्दावन बन जाने दो .