भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जग जीवन को फल जानि परयो ,धनि नैनन को ठहरैयत हैँ / पद्माकर
Kavita Kosh से
जग जीवन को फल जानि परयो ,धनि नैनन को ठहरैयत हैँ ।
पदमाकर हयो हुलसै पुलकै, तन सिंधु-सुधा के अन्हैयत हैँ ।
मन पैरत सो रस की नद मे, अति आनन्द मे मिलि जैयत हैँ ।
अब ऊँचे उरोज लखे तिय के, सुरराज को राज सो पैयत हैँ ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।