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जग ने कैसा मुझको बना दिया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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जग ने कैसा मुझको बना दिया।
सबके जैसा मुझको बना दिया।

नफ़रत की थी जिस से जीवन भर,
रब ने वैसा मुझको बना दिया।

गा-गा कर सबने इसकी महिमा,
केवल पैसा मुझको बना दिया।

भूल हुई दुनिया से तो भुगते,
क्यों कर ऐसा मुझको बना दिया।

मान ख़ुदा लूँगा उसको जिसने,
मेरे जैसा मुझको बना दिया।