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जग में पग / ओम पुरोहित कागद
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जूण जातरा
भेळप में सधै
पूगै ठोड़
जका भेळा बधै।
नस
निजर सूं
पेट खाथो
टाळै टोळी सूं।
जग में पग
हळवा-हळवा उठै
पण भाजै मन
जद
हरियाळा सुपना
हुवै साम्हीं।