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जग वालों को बात यही बस खलती रहती है / राम नाथ बेख़बर

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जग वालों को बात यही बस खलती रहती है
बीच भँवर में नाव हमारी चलती रहती है।

क़ाबू में रख लेना चाहें हर कोई इसको
लेकिन ये तो उम्र निगोड़ी ढ़लती रहती है।

तेरी यादों की बस्ती से हर दिन गुजरा हूँ
दिल की धड़कन यादों के बल चलती रहती है।

शायद कुछ अच्छा हो मैंने सोचा है हर दिन
चाहत दिल की हाथ हमेशा मलती रहती है

जलना और जलाना शायद है फ़ितरत इसकी
पानी पर भी धूप बिचारी जलती रहती है।

मुझको क्या मतलब है दुनिया भर की दौलत से
मेरी हसरत इक रोटी पे पलती रहती है।