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जड़ : दो / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
रूंख हर्यो
रूंख बळयो
पान पीळा
पान हर्या
डाळयां लुळै
पुहुप खिलै
देखो पड़तख
देखो पण कद
घूड़ में धसी
रूंख नै साम्भती
खुद नै होमती
रूंख नीचै पड़ी
अटल मून जड़!