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जदों ज़ाहिर होए नूर होरी / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
परम ज्योति के प्रकाशित होने पर
तूर पर्वत जलकर भस्म हो गया।
फिर मंसूर को फाँसी मिली।
वहाँ कोई शेखी नहीं बघार सकता।
मैं बोले बिना नहीं रह सकता।
यदि मैं रहस्य खोल दूँ
तो सब अपने-अपने झगड़े भूल जाएँगे
और अपने मित्र बुल्ले को मार डालेंगे।
अतः यहाँ यही उचित है कि मैं रहस्य न खोलूँ।
मैं बोले बिना नहीं रह सकता।
मूल पंजाबी पाठ
जदों ज़ाहिर होए नूर होरी,
जल गए पहाड़ कोह तूर होरी,
तदों दार चढ़े मंसूर होरी,
ओथे शेखी मेंहडी ना तेहँडी अय
मूँह आई बात न रेहँदी अय,
जे ज़ाहिर करां इसरार ताईं।
सभ भुल जावन तकरार ताईं,
फिर मारन बुल्ले यार ताईं।
एथे मखफ़ी गल सोहेन्दी अय,
मूँह आईं बात ना रेहँदी अय।