जद मिनखपणो हिड़काग्यो हो / करणीदान बारहठ
जद मिनखपणो हिड़काग्यो हो, देवां रो अस्तित्व कांप्यो हो।
मन्दिर री कांपी ही मरजादा, मस्जिद रो मालिक हांफ्यो हो।
ईश्वर री माटी पीटीजी,
लक्ष्मी नै नंगी नचवाई।
इज्जत रै मोल मिल्यो जीवण,
सड़कां पर खुल्ली नचवाई।
बो एक डोकरो भारत में,
घूमै हो इतिहास बचावण नै।
मिनखां री मान बचावण नै,
भारत री शान बचावण नै।
पैरण नै एक लंगोटी ही,
अर एक काख में पोथी ही।
हालै हो हलकै झोंकै स्यूं,
पण जलती जोत अनोखी है।
बो मिनख मुलकतो एहड़ो हो,
बो स्वयं ईश्वर रो वर हो।
बो ऊंचो हो माणस स्यूं पुख्ता,
शायद बो पूर्ण परमेश्वर हो।
नोआ खाली, बीहार गयो,
पंजाब फिरयो, दिल्ली आयो।
बो फिरयो बचावण मिनखां नै,
बो गली गली अर गांव फिरयो।
बस केवल एक संदेशो हो,
मिनखां रा जाय भाई हां।
ना हिंदू हां ना मुसलमान,
सै मालिक री परछाईं हां।
ओ भेद मिनख री पैदायश,
ओ भेद मिनख रो भ्रम मात्र।
ईश्वर अल्ला में भेद नहीं।
ओ भेद मिनख रो नाश मात्र।
बापू रो असर नहीं होयो,
बा आग सुलगती एहड़ी ही।
आखै भारत री कालिख ही,
कलमुंही कोजी भैड़ी ही।
जद मिनखपणो हिड़काग्यो हो, देवां रो अस्तित्व कांप्यो हो।
मन्दिर री कांपी ही मरजादा, मस्जिद रो मालिक हांफ्यो हो।
बहनां बेट्यां रा रूप लुट्या,
धरती री आंख्यां शरमाइ्रर्।
मां बाप देखता बेबस हा,
बेटां री लाशां बिछवाई।
बा रूप रूपै री लूट इसी,
मंदिर रो राम निकलग्यो हो।
नंगी नार्या री नूमायश
अल्ला रो आसरो हिलग्यो हो।
पण डैण फिरै हो हांप्योड़ों
पूरब पच्छम उत्तर दक्खण।
आखिर बो दिल्ली में आयो,
करणै नै दिल्ली में भाषण
सभा बणी ही मोटी-सी,
नर री नार्यां री भीड़ बठै।
नैणा तरसै ही दरसण नै,
पल पल री घणी अडीक बठै।
आखिर बाबै रा चरण चल्या,
उफणै हो ऊंडो स्नेह जठै।
प्यासा चातकड़ा तरसै हा,
कद बरसै बादल गोट अठै।
होलै होलै पग मेलै हा,
धरती चरणां नै चूमै ही।
पावन गंगा सी बणगी ही,
बा रज हिवड़ै में झूमै ही।
पण बा घड़ जालिमी जबरदस्त,
ईं महाकाल री पोथी में।
पल रो भी मोड़ नहीं लैवै,
ईं महामौत री कौथी में।
मंडरावै चील बणी भैड़ी,
भारत री मोड़ चुरावण नै।
आई अमरी स्यूं चाल अठै,
भारत रो गांधी ल्यावण नै।
जद मिनखपणो हिड़काग्यो हो, देवां रो अस्तित्व कांप्यो हो।
मन्दिर री कांपी ही मरजादा, मस्जिद रो मालिक हांफ्यो हो।
बड़गी नत्थु रै माथै में,
चाली बा चोखी चोट लियां।
पड़ी कालजो काड लियो,
भागी गांधी री जोत लियां।
बो गांधी के गिगनार गयो,
या पड़यो धरा री हिचक्यां में।
यां पूंच्यो पल में बिजली स्यूं,
पृथ्वी जाये री सिसक्यां में।
बो खून बिखरग्यो धरती पर,
या भेदभाव री ज्वाला पर।
ठंडी पड़गी आकाश चढ़ी,
अब आंसू आग्यां गालां पर।
नेहरू री काया कांप उठी,
सरदार सोच में पड़ग्यो हो।
के हिन्दू के मुसलमान,
शर्मीलो डूंगो गड़ग्यो हो।
बो गांधी युग रो चमत्कार,
गोरां री तोपां चकराई ही।
बो अडिग अरावल नहीं डिग्यो,
गोरां री माया शर्मायी।
म्हे खतम कर्यो 6 महिनां में
इतिहास लिखै लो अै बातां।
ईं स्यूं बत्ती है शर्म कठै,
युग-युग तक चुबसी अै घातां।
आखी हिन्दवाणी रोवै ही,
सै लोग लुगायां इक सांसू।
चोखो इक सागर बण ज्यातो,
जे भेला करता बै आंसू।
सूरजड़ै मुखड़ो ढ़क लीन्यो,
जद तुरत तावड़ो जा सोयो।
चंदै रो मुखड़ो पीलो हो,
तारां रो आपो ही खोयो।
आभै री आंख्या बरसै ही,
धरती रो आंचल भीगै हो।
कड़कै हो बिजली रो माथो,
मारूत अब सिसक्यां लेवै हो।
जद मिनखपणो हिड़काग्यो हो, देवां रो अस्तित्व कांप्यो हो।
मन्दिर री कांपी ही मरजादा, मस्जिद रो मालिक हांफ्यो हो।