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जनकवि का शताब्दी वर्ष और मेरे मोहल्ले का चौकीदार / अरुण चन्द्र रॉय

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मुक्तिबोध हुए हैं
हिन्दी के बड़े कवि
उनका शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है
स्कूलों में, कालेजों में, विश्वविद्यालयों में
संस्थानों में
कुछ लोग कहते हैं कि
उनसे भी बड़े कवि थे त्रिलोचन, नागार्जुन और कई अन्य नाम लेते हैं वे

इनकी कविताओं से सरकारें हिल जाया करती थीं
सुनाते हैं विश्वविद्यालय के लोग मँचो से
यह भी सुनाते हैं कि पूँजीवादी व्यवस्था डर जाती थी
वे सब कहाए जनकवि, मज़दूरों के कवि, लोककवि

उनकी कविताओं से डरते-डरते
पूँजीपतियों ने लील लिए जंगल, पहाड़ और नदियाँ
कब्ज़ा कर लिया सरकारों पर, संस्थानों पर, विश्वविद्यालयों पर
उन्होंने खड़े कर लिए समानान्तर संस्थान, विश्वविद्यालय, कालेज और स्कूल
और उनके शिष्य करते रहे गोष्ठियाँ, सेमीनार, बहस
निकालते रहे पत्रिकाओं के विशेषाँक

अपने मोहल्ले के चौकीदार से, जो कि आया है इन्ही कवियों के गाँव की तरफ़ से
पूछता हूँ कवियों के नाम , उनका हालचाल तो अनमने ढंग से मुस्काता है
जवाब में वह गाता है कबीर के दोहे और तुलसी दास की चौपाइयाँ ।