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जनतन्त्रक दुर्घटना / रामानुग्रह झा

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फट् ! फट् ! फट् ! फटाक् !!!
जनतन्त्रक टंकी फाटि गेल
जनताक मोन पर जमल बर्फ
चेतनाक सूर्यसँ पघिल-पघिल
कैक क्यूसेक्स जल-प्लावन कएल।

उठल अछि शब्दक भयंकर बिहाड़ि
गीड़ लेत हमरा सबकें,
किताबक फोहार, अखबारक वर्षा
भाषणक नदी आ बहसक नाला,
सेमिनारी नहर, आश्वासनक बान्ह,
विधानसभाक पोखरि, आ संसदीय डाबर
सब उधिया रहल अछि
उमड़ि रहल अछि हमरा चारू कात।
आ हम सब भरि मुखहर पानिमे दहाइत छी।
गाम आ शहर, गली आ सड़क,
 खेत आ फैक्ट्री, घर आ ऑफिस-
शब्दक एहि बाढ़िमे
दहाइत भसियाइत सब किछु
परस्पर टकरा क’ टूटि रहल अछि-
योजनाक फाइल आ इतिहासक पात
भविष्यक कन्टैªक्ट आ विज्ञानक प्रबन्ध।

‘हम कतय छी ? कतय जाएब हम !
डल झील कि ट्राम्बेक रिएक्टर
हाजीपीरक चौकी कि ऊटीक जेल ?’’
से पूछैत छथि श्री....की औ....?
मनुक्ख आ कि राशन कार्ड ?’
उत्तर छैक क्रान्ति आ क्रान्ति
आ बैसैत छथि जा क’ चाहक दोकानमे ?