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जनपद / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
बीसवै सईकै रै सेड़ै
कठै पूगग्या हां म्हे ?
नानी-दादी नै झुरै
दिन-रात
कांईं गीत
अर कांईं बात !
तरसै गीतां नै कंठ
रांचै पाठकां नै
कविता अर सबद।
वेलै माईतां सारू
टाबर
अर बेटा सारू
तात।
संभळौ, संभळौ
अर संभळौ
नींतर व्हैला
अपघात।