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जनादेश एक मज़ेदार चीज़ होती है / संजय चतुर्वेद

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जैसे 93 के चुनावों ने धर्मनिरपेक्षता का जनादेश दिया
जैसे 91 के चुनावों ने साम्प्रदायिकता का जनादेश दिया था
जैसे हिमाचल के सेबों ने
डंकल को समर्पण का जनादेश दिया
जैसे आर्थिक गड़बड़ और भ्रष्टाचार को और बढ़ाने का जनादेश मध्य भारत से मिला
जैसे राजस्थान ने साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष भ्रष्टाचार के बीच आवाजाही का जनादेश दिया
जैसे अयोध्या साम्प्रदायिक और फैज़ाबाद धर्मनिरपेक्ष साबित हुए
और दिल्ली ने मन्दिर वहीं बनाने का जनादेश दिया
फिर जो माँगोगे वही मिलेगा
बुद्धिख़ोरों को बुद्धिख़ोरों जैसा
लालू को लालू जैसा
हेगड़े को जो जनादेश मिला
उससे वी०पी० सिंह को बड़ी मुश्क़िल होती
सो उन्होंने लालू वाले जनादेश को हेगड़े के पीछे लगाया
ऐसा कुछ माँ का आशीर्वाद है
लोकतन्त्र के दरबार से कोई ख़ाली नहीं जाता
चाहे जो मजबूरी हो
वामपन्थियों को हमेशा वामपन्थियों जैसा मिलता था
भाजपा को भाजपा जैसा
चुनाव कहीं भी हों
जनादेश मिलता था हरकिशन सिंह सुरजीत और भजनलाल को
और उत्तर प्रदेश में तो वोटिंग पैटर्न पर विचार इस कदर हावी रहा
कि कल्याण सिंह को कल्याण सिंह वाला मिला
मुलायम सिंह को मुलायम सिंह वाला
कांशीराम ने कांशीराम वाला जनादेश लेकर
पासवान वाले जनादेश में गड़बड़ कर दी
और जो जनता 91 में साम्प्रदायिक थी
वह तो 93 आते-आते हो ली धर्मनिरपेक्ष
और इस भगदड़ में किसी को ध्यान ही नहीं रहा
कि किसी को ब्रीफ़केस वाला जनादेश मिला
किसी को सूटकेस वाला
इतना इन्तज़ाम तो इन्दिरा जी कर ही गईं
कि पत्रकारों-वकीलों-प्रोफ़ेसरों के जनादेश
उनकी नियुक्तियों में निहित होते थे
आर्थिक विषमता के इस लोकतन्त्र में
अपने-अपने मुवक्किलों के ऐतबार से
सबको अपने-अपने जनादेश
मतदान से पहले ही मिल जाते थे
लेकिन इनमें सबसे दिलचस्प होते थे
कवियों लेखकों चिन्तकों विश्लेषकों को मिले परदेसी जनादेश
जो बुद्धिघुट्टी के साथ पहुँचते थे और घर तक पहुँचाते थे
किसी को रूस से किसी को चीन से किसी को अरब से
बाक़ी बचे हुओं को अमरीका से
इतने मुस्तनद और होशरुबा
कि सच्चाइयाँ बदल जाएँ
बन्द मतपेटियां इकट्ठा करके समुद्र में फेक दी जाएँ
इनके जनादेश पर शिकन नहीं आती थी ।

1995