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जन्मदिन / शंख घोष / सुलोचना वर्मा / शिव किशोर तिवारी

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तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूँगा इस वायदे के सिवा
कि फिर हमारी मुलाक़ात होगी कभी

होगी मुलाक़ात तुलसी चौरे पर, होगी मुलाक़ात बाँस के पुल पर
होगी मुलाक़ात सुपाड़ी वन के किनारे

हम घूमते फिरेंगे शहर में डामर की टूटी सड़कों पर
दहकते दोपहर में या अविश्वास की रात में

लेकिन हमें घेरे रहेंगी कितनी अदृश्य सुतनुका हवाएँ
उस तुलसी या पुल या सुपाड़ी की

हाथ उठाकर कहूँगा, यह रहा, ऐसा ही, सिर्फ़
दो-एक तकलीफ़ें बाक़ी रह गईं आज भी

जब जाने का समय हो आए, आँखों की चाहनाओं से भिगो लूँगा आँख
सीने पर छू जाऊँगा उँगली का एक पंख

जैसे कि हमारे सामने कहीं भी और कोई अपघात नहीं
मृत्यु नहीं दिगन्त अवधि

तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूँगा इस वायदे के सिवा कि
कल से हर रोज़ होगा मेरा जन्मदिन।

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा और शिव किशोर तिवारी

('निहित पातालछाया' (1961) नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - जन्मदिन)