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जन्म एक बच्चे का / भुवनेश्वर
Kavita Kosh से
चेहरा ज़र्द, आँखें डूबी
पाँव ठण्डे
ख़ून था उसकी एड़ियों पर
और पालने में वह रो रही थी
प्रभु की कृपा ।
यह उस सज्जन की कृपा है
जिसके पास सृजन की प्रभु-कृपा है
और उसके गर्भ में है विश्व की
यादगार
लेकिन एक शर्मनाक बच्चा
उस ग़रीब सुतार की तरह
जो कि एक बच्चे की तरह अकेला
बग़ैर आभास के घूमता रहा
घूमकर देखा और वह परेशान थी
एक गुस्सैल दुःखी बच्चे की तरह।
उसके पाँव कँपकँपा गए
और उसकी आँखें सूज गईं
वह बेचारा सुतार
यह सब देखकर परेशान
रो दिया एक बच्चे की तरह
नहीं; एक पशु की तरह प्यार से वहशी
एक दुष्ट ईश्वर की तरह
उसने उस ग़रीब सुतार की पत्नी
के साथ ब्लात्कार किया
इस विश्व के ईसा को पैदा करने के लिए
शर्मनाक बात थी।
अगस्त 5, 1936
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश बक्षी