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जन-क्रांति / केदारनाथ अग्रवाल

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राख की मुर्दा तहों के बहुत नीचे,
नींद की काली गुफाओं के अँधेरे में तिरोहित,
मृत्यु के भुज-बंधनों में चेतनाहत
जो अँगारे खो गए थे,
पूर्वी जन-क्रांति के भूकम्प ने उनको उभारा;
जिंदगी की लाल लपटों ने उन्हें चूमा-सँवारा,
और वह दहके सबल शस्त्रास्त्र लेकर,
रक्त के शोषण विदेशी शासकों पर,
और देशी भेड़ियों पर!

रचनाकाल: ०४-१२-१९४८