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जन-स्तुति / फ़्रेडरिक होल्डरलिन
Kavita Kosh से
क्या अब नहीं है मेरा मन पावन,
क्या नहीं हो गया है अधिक दीप्तिमान मेरा जीवन —
जबसे मैंने किया है प्रेम ?
तब क्यों तुमने दिया था मुझे इतना सम्मान
जब मैं कोरे शब्दों को जाया करता था
अभिमानी था
और था बहुत ही बेचैन ?
हाँ, लोग पसन्द करते हैं वह सब
जिसका बाज़ार में हो सके मूल्यांकन,
जो उस पर करता है अत्याचार
ग़ुलाम बस उसी का करता है पूजन ;
केवल वे, जो स्वयं दिव्य हैं,
करते हैं सदा
ईश्वरत्व में विश्वास ।