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जबतक जग में रहते मुझको ’मेरा’ कहनेवाले / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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जबतक जग में रहते मुझको ’मेरा’ कहनेवाले।
तबतक तुम हो दूर खड़े हँसते हो सदा निराले॥
जबतक रखते मोह-ग्रस्त मुझको ये डाले घेरा।
तबतक तुम कहते सकुचाते खुलकर मुझको ’मेरा’॥
जबतक जगके प्राणि-पदार्थोंको मैं कहता ’मेरा’।
तबतक तुमको कभी नहीं कह पाता खुलकर ’मेरा’॥
जबतक तुमको ही मैं ’मेरा’ नहीं बना हूँ पाता।
तबतक ’मेरे-मेरे’-का दावानल सदा जलाता॥
दया करो, इस मोह-पाशसे मुझको तुम्हीं छुड़ा‌ओ।
प्यारभरे शब्दों में मुझको कह ’मेरा’ अपना‌ओ॥
समझूँ मैं भी एकमात्र तुमको ही केवल ’मेरा’।
उठे तुरत मेरे जीवनसे सब मायाका डेरा॥