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जबर्दस्ती / नरेश अग्रवाल

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सभी का तर्क था
तुम्हें यह मकान बेच देना चाहिए
तुम अकेले हो
बनेगी जब इस पर
बहुमंजिली इमारत
बहुत सारे परिवार रह पायेंगे
एक साथ खुशी से
अधिक सोचने का
मौका नहीं दिया गया उसे
रातों-रात पंजों के जोर से
कर दिया गया उसे बाहर
चोंच में थोड़े से दाने लेकर
घायल कबूतर की तरह उड़ा वह
दूसरे ठौर की तलाश में
फिर कभी मुड़ कर नहीं देखा
इधर का रास्ता ।