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जबसे मौसम बसन्ती / सुभाष चंद "रसिया"

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जबसे मौसम बसन्ती आ गया।
कोई दिल को चुराने आ गया॥

खिलती है कलियाँ महकती है डाली।
फूलों से बगिया को सजता है माली।
दिल से दिल को चुराने कोई आ गया॥
जबसे मौसम बसन्ती आ गया॥

अमवा कि डाली पर बोले कोयलिया।
झुनून झुनून झनके पैरन पैजनियाँ।
कोई मुझको सताने अब आ गया॥
जबसे मौसम बसन्ती आ गया॥

कलि-कलि से मदन रस टपके।
फूलो की डाली पर भवरा भटके।
पटसे घुघट ऊठने वह आ गया॥
जबसे मौसम बसन्ती आ गया॥

छुपछुप के मिलना बलम मोरे रसिया।
पहरा है भारी भूलो नाही बतिया।
आग मौसम लगाने जब आ गया॥
जबसे मौसम बसन्ती आ गया॥