जब आप 'सच' बोलते हैं / रवीन्द्र दास
आप जब भी 'सच' बोलते हैं
मेरी उँगलियाँ थरथराने लगती हैं
भिंच जाती है मेरी मुट्ठी
आप भी, न जाने क्यों, मुझे दिखने लगते है
पगुराती भैंस
जब भी आप सच बोलते हैं।
नेता जी , मुझे माफ़ करें
आपकी बातें बहुत ध्यान से सुनता रहा हूँ बरसों
करता रहा यकीन
कि आप जनता के शुभ चिन्तक हैं
आप चाहते हैं अपने राष्ट्र का हित
मानता रहा कि आप जनता के सेवक हैं
लेकिन कब तक करता रहता आपकी नौटंकी पर विश्वास
आपसे अच्छी और मजेदार तमाशा तो फ़िल्मी नचनिया दिखाते हैं
हमने आपको नचनिया नहीं
कर्मनिष्ठ महापुरुष माना था
आप निकले सत्यवादी नौटंकीबाज
लिंग, वय, वेशभूषा और भंगिमा वगैरह में तो हुए परिवर्तन
किन्तु नहीं बदली तो आपकी नीयत
जिसमे खोट तब भी थी , आज भी है
और हम लोकतंत्र की मर्यादा से लिथड़े
लोकतंत्र के लोग
निगलते है देखकर भी मक्खियाँ
आप जब भी सच बोलते हैं
उन शब्दों से निकलती है बदबू
अक्सर मुश्किल हो जाता है साँस लेना
आपके धवल वस्त्रों से
आपकी आँखों से
आपकी प्रकम्पित जबान से
बंधा चला करता है लोकतंत्र का स्थावर
आप जब सच बोलते हैं
हमारा ह्रदय रोता है
नेताजी माफ़ करें
कम से कम से एक चुनाव में आप आराम करें।