Last modified on 10 मई 2009, at 07:01

जब कभी भी दो दिलों में / विजय वाते

जब कभी भी दो दिलों में प्यार का पौधा उगा।
हो के ख़ुश अल्लाह ने नदियों में पानी भर दिया।

अब तलक जो देखता था एक ही राशि का फल,
इन दिनों अखबार में दो राशियाँ पढ़ने लगा।

उसको दफ़्तर की घड़ी लगती थी साज़िश में शरीक,
पाँच बजते ही नहीं थे, काँटा जैसे थम गया।

चंद ग्रीटिंग, कुछ SMS, इक अदद मुरझाया फूल,
चाह कर आखिर उसे, बतलाओ मुझको क्या मिला।

उसने हाथों को बढ़ाया और तारे चुन लिए,
पास आकर आसमां, कुछ और उजाला हो गया।