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जब कभी भी दो दिलों में / विजय वाते
Kavita Kosh से
जब कभी भी दो दिलों में प्यार का पौधा उगा।
हो के ख़ुश अल्लाह ने नदियों में पानी भर दिया।
अब तलक जो देखता था एक ही राशि का फल,
इन दिनों अखबार में दो राशियाँ पढ़ने लगा।
उसको दफ़्तर की घड़ी लगती थी साज़िश में शरीक,
पाँच बजते ही नहीं थे, काँटा जैसे थम गया।
चंद ग्रीटिंग, कुछ SMS, इक अदद मुरझाया फूल,
चाह कर आखिर उसे, बतलाओ मुझको क्या मिला।
उसने हाथों को बढ़ाया और तारे चुन लिए,
पास आकर आसमां, कुछ और उजाला हो गया।