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जब कभी भी / कुमार रवींद्र
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जब कभी भी
आरती के क्षण तुम्हारे हों
तुम इन्हें भी याद करना
सगुनपंछी
जो गया उड़कर इधर से है अभी
आई बच्चे की हँसी जो
उधर घर से है अभी
जब तुम्हारे पाँव
मन्दिर के दुआरे हों
तुम इन्हें भी याद करना
नदी में जो दीप
अम्मा ने सिराया था सुबह
बाऊजी ने जो
अनूठा मंत्र गाया था सुबह
देवता की
आँख में जब चाँद-तारे हों
तुम इन्हें भी याद करना
शिला जो हो रही लड़की
कल कुँआरी थी यही
झील रह-रह काँपती है
कभी तो सबकी दुलारी थी यही
जब तुम्हारे
शंख के सुर थके-हारे हों
तुम इन्हें भी याद करना