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जब कभी / अर्चना भैंसारे
Kavita Kosh से
और जब कभी
मैली हो जाती रुह
तब याद आती
तुम्हारे मन में बहते
मीठे झरने की
कि जिसमें डूबकर
साफ़ करती हूँ आत्मा अपनी।